मौद्रिक नीति के घटक

4. नरम रुख रखने पर आरबीआई मौद्रिक नीति में प्रमुख ब्याज दरों को घटाता है. इससे अर्थव्यवस्था में पैसों की आपूर्ति बढ़ने का रास्ता खुल जाता है. बाजार में नकदी बढ़ने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं.
भारत में मौद्रिक नीति - monetary policy in india
मौद्रिक नीति की एक मौद्रिक नीति ढाँचे के अन्तर्गत लागू किया जाता है। इस ढाँचे में निम्नलिखित घटक शामिल हैं: (अ) मौद्रिक नीति के उद्देश्य, (ब) मौद्रिक नीति के विश्लेषण (जो पारेषण यान्त्रिकी ) पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, तथा (स) परिचालनात्मक प्रक्रिया (परिचालनात्मक लक्ष्य एवं उपकरण)। इस खण्ड में, भारतीय संदर्भ में इन्हीं पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
मौद्रिक नीति के उद्देश्य
कीमत स्थिरता (या मुद्रास्फीति नियन्त्रण) एवं आर्थिक संवृद्धि को बनाए रखना ही सारे विश्व में केन्द्रीय बैंकों द्वारा सामान्तया अपनाए जाने वाले उद्देश्य हैं। नब्बे के दशक में अनेक देश (ब्राजीज,
मेक्सिको, अर्जेन्टाइना, द. कोरिया एवं दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में विशेष रूप से) उपजे बड़े पैमाने के वित्तीय संकट को देखते हुए वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए ऐसे मौद्रिक नीति के घटक संकटों से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रक्षा करना तथा यथासम्भव ऐसे संकटों के दुष्प्रभावों को अन्य अर्थव्यवस्थाओं में न होने देना मौद्रिक नीति का एक अतिरिक्त उद्देश्य हो गया तथापि, इन समस्त उद्देश्यों को एक साथ प्राप्त कर पाना प्रायः सम्भव नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए कि मौद्रिक नीति उद्देश्य आपस में निकटता के साथ सम्बन्धित है। उदाहरण के तौर पर, मुद्रा स्फीति और बेरोजगारी के बीच संघर्ष की स्थिति रहती है- ऊँची बेरोजगारी कीमत पर मुद्रा स्फीति में कमी लायी जा सकती है।
मौद्रिक नीति के घटक
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निम्नलिखित में से कौन सा भारत .
रेपो रेट नैतिक उत्तेजना क्रेडिट समभाजन सार्वजनिक ऋण
Solution : मौद्रिक नीति देश के केन्द्रीय बैंक (भारत में आरबीआई) द्वारा स्वीकृत ऋण नियन्त्रण मानकों से संबंधित है। मौद्रिक नीति के उपकरण दो प्रकार के होते हैं : परिमाणात्मक और गुणात्मका ये उपकरण मुद्रा की आपूर्ति, धन की लागत और ऋण की उपलब्धता के द्वारा कुल मांग स्तर को प्रभावित करते हैं। दो प्रकार के उपकरणों में से उपकरण की पहली श्रेणी में बैंक दर परिवर्तनों, खुला बाजार परिचालनों और परिवर्तनशील आरक्षी आवश्यकताओं को शामिल किया जाता है। सार्वजनिक ऋण और सार्वजनिक राजस्व मौद्रिक नीति के अंतर्गत नहीं बल्कि वित्तीय नीति के अंतर्गत आते हैं।
मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था पर कैसे असर डालती है?
मौद्रिक नीति ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है.
यह फैसला केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) लेती है. इसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ता है. आइए जानते हैं क्या है मौद्रिक नीति और कैसे अर्थव्यवस्था में नकदी को बढ़ाने और घटाने के लिए केंद्रीय बैंक इसका इस्तेमाल करता है.
1. मौद्रिक नीति ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे मौद्रिक नीति के घटक की आपूर्ति को नियंत्रित करता है.
2. मौद्रिक नीति से मौद्रिक नीति के घटक कई मकसद साधे जाते हैं. इनमें महंगाई पर अंकुश, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना शामिल है. रोजगार के अवसर तैयार करना भी इसके उद्देश्यों में मौद्रिक नीति के घटक से एक है.
मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
मौद्रिक नीति क्या है ?, मौद्रिक नीति उद्देश्य, मौद्रिक नीति के उपकरण, मौद्रिक नीति के गुणात्मक उपकरण, मौद्रिक नीति (Monetary Policy notes in Hindi for UPSC, PCS) आदि प्रश्नों के उत्तर निचे दिए गए हैं –
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मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी भी राष्ट्र के केंद्रीय बैंक द्वारा विभिन्न उपकरणों जैसे कैश रिजर्व रेश्यो (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात(SLR-Statutory liquidity ratio), बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर आदि के उपयोग से मुद्रा और ऋण की उपलब्धता पर नियंत्रण स्थापित करना है। भारत के अभिप्राय में केंद्रीय बैंक “भारतीय रिजर्व बैंक” है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए मुद्रा पर उपयुक्त नियंत्रण रखना अति आवश्यक होता है। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति से अर्थव्यवस्था में मुद्रा के संकुचन एवं प्रसार को नियंत्रित करता है। मौद्रिक नीति के घटक भारत में मौद्रिक नीति को MPC (Monetary Policy Committee) द्वारा प्रत्येक 2 माह में बनाया जाता है। मौद्रिक नीति बनाने वाली इस MPC में 6 सदस्य होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता रिजर्व बैंक के गवर्नर करता है।
मौद्रिक नीति के उद्देश्य
Objectives of monetary policy in Hindi –
- वित्तीय/मूल्य स्थिरता – मूल्य स्थिरता का सामान्य अर्थ है बाजार में उत्पादों के मूल्य में तेज गिरावट या बढ़ोतरी को रोकना। यदि किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण न रखा जाये तो उस अर्थव्यवस्था में स्थिरता समाप्त हो जाएगी। उदाहरण के लिए यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाए तो लोगों के पास क्रय शक्ति बढ़ जाएगी जिससे की उत्पादों के दाम बढ़ने लगेंगे और मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। अतः मौद्रिक नीति से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाए रखता है।
- विनिमयन दर से स्थायित्व – विनिमयन दर में स्थायित्व से अभिप्राय भारतीय मुद्रा की विदेशी मुद्रा से तुलनात्मक मूल्य से है। यदि इस पर नियंत्रण न रखा जाए तो भारतीय मुद्रा का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिर सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था मौद्रिक नीति के घटक दुष्प्रभावित होगी।
- रोजगार सृजन – मौद्रिक नीति के द्वारा रोजगार सृजन को भी बढ़ावा दिया जाता है। परन्तु मौद्रिक नीति में रोजगार सृजन को वित्तीय/मूल्य स्थिरता के लक्ष्य के बाद ही स्थान दिया जाता है।
- विकास – मौद्रिक नीति, देश की आर्थिक नीति का एक महत्वपूर्ण घटक है। देश का आर्थिक विकास ही इसका परम उद्देश्य है।
मौद्रिक नीति के उपकरण
Monetary policy tools – मौद्रिक नीति के दो तरह के उपकरणों का प्रयोग करती है –
1. प्रत्यक्ष उपकरण
वे उपकरण जो मुद्रा की मात्रा पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखते हैं।
- कैश रिजर्व रेश्यों (CRR – Cash Reserve Ratio) – सभी बैंकों को अपने पास उपलब्ध पैसों(बैंक उपभोक्ताओं द्वारा जमा किया गया) में से केंद्रीय बैंक के पास कुछ पैसा रिजर्व रखना अनिवार्य होता है। इसको एक अनुपात में रखा जाता है जिसे कैश रिजर्व रेश्यों(CRR) कहते हैं। भारत में वर्तमान समय में CRR 3% है। जिस समय केंद्रीय बैंक को अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को कम करना होता है वो CRR को बढ़ा देती है, जिससे की बैंको के पास, उपलब्ध मुद्रा में कमी आती है और बैंक लोन देने में कमी करते है। इसके ठीक विपरीत अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ाने के लिए CRR को घटा दिया जाता है।
- वैधानिक तरलता अनुपात (SLR – Statutory liquidity ratio) – यह बैंकों के पास जमा राशि का वह भाग होता है जिसे की बैंकों को अपने पास सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है अर्थात इन पैसों में से बैंक लोन नहीं दे सकता। CRR की भांति ही ये अनुपात को भी कम व ज्यादा करके केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता को बढ़ा व घटा सकता है।