चलती औसत तुलना

Reliance Jio 4जी नेटवर्क में डाउनलोड, अपलोड स्पीड में टॉर पर: TRAI
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नई दिल्ली. दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी जियो 4जी नेटवर्क पर औसत डाउनलोड और अपलोड स्पीड के मामले में टॉप पर है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की ओर से जारी आंकड़ों से यह जानकारी दी है. ट्राई ने अक्टूबर में बीएसएनएल को 4जी की स्पीड की सूची से हटा दिया है, क्योंकि कंपनी ने अभी 4G की सेवाएं शुरू नहीं की हैं.
जियो ने पिछले महीने 20.3 मेगाबिट्स प्रति सेकंड (एमबीपीएस) की औसत स्पीड से डाउनलोड रफ्तार में टॉप पर रही.
लिस्ट में टॉप पर जियो
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण की लिस्ट में जियो के बाद एयरटेल का नंबर आता है. कंपनी ने अक्टूबर के दौरान 15 एमबीपीएस की डाउनलोड स्पीड दर्ज की है. इसके बाद वोडाफोन आइडिया (वीआई) 14.5 एमबीपीएस की स्पीड के साथ तीसरे स्थान पर आती है.
अक्टूबर में जियो की 4जी अपलोड स्पीड सितंबर के 6.4 एमबीपीएस से घटकर 6.2 एमबीपीएस रह गई. हालांकि, कंपनी ने श्रेणी में अपना शीर्ष स्थान बनाए रखा.
हिमाचल चुनाव: शहरी मतदाताओं में उदासीनता एक बार फिर आयी सामने
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर के विधानसभा चुनाव के दौरान हालांकि, रिकॉर्ड 75.6 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, लेकिन पर्वतीय राज्य के शहरी मतदाताओं की उदासीनता एक बार फिर सामने आयी। यह बात निर्वाचन आयोग के आंकड़ों से सामने आयी।
आंकड़ों से पता चलता है कि शिमला में 62.53 प्रतिशत मतदान न केवल राज्य में सबसे कम था, बल्कि 2017 के चुनावों की तुलना में भी 1.4 प्रतिशत कम है।
सरकारी कॉलोनियों सहित शहरी शिमला के महत्वपूर्ण इलाकों में लगभग 50 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया जो सबसे कम मतदान प्रतिशत में से एक है। इससे शिमला विधानसभा सीट का मतदान प्रतिशत राज्य में सबसे कम रहा।
चुनाव आयोग चलती औसत तुलना के अधिकारियों ने कहा कि हालांकि 75.6 प्रतिशत मतदान राज्य का अब तक का सबसे अधिक मतदान है लेकिन शहरी क्षेत्रों से अधिक भागीदारी से चलती औसत तुलना बेहतर मतदान प्राप्त करने में मदद मिल सकती थी।
इसके अलावा, महत्वपूर्ण शहरी क्षेत्रों में औसत मतदान ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत कम था।
अधिकारियों ने कहा कि यदि शिमला, सोलन, कसुम्प्टी और धर्मशाला के कुछ वर्ग के मतदाता यदि इस बार समान उत्साह के साथ घरों से बाहर निकलते तो मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड बहुत अधिक हो सकता था।
आंकड़ों से पता चलता है कि महिला मतदाताओं का मतदान पुरुष मतदाताओं की तुलना में लगभग 4.5 प्रतिशत अधिक था और कुल मतदान प्रतिशत की तुलना में लगभग दो प्रतिशत अधिक था। जहां 76.8 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, वहीं केवल 72.4 प्रतिशत पुरुषों ने मतदान किया।
अधिकारियों ने कहा कि 15,265 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुनिया के सबसे ऊंचे मतदान केंद्र ताशीगंग में 100 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, जहां मतदाता खराब मौसम के बावजूद मतदान के लिए अपने घरों से बाहर आये।
उन्होंने बताया कि चंबा की भरमौर विधानसभा सीट के चसाक भटोरी में मतदान केंद्र 14 किलोमीटर दूर था और 11,948 फुट की ऊंचाई पर स्थित था लेकिन इसके बावजूद वहां 75.26 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, 10,000 फुट से अधिक ऊंचाई पर स्थापित 85 मतदान केंद्रों में औसत मतदान राज्य के औसत के करीब था।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘बहादुर, समर्पित और मेहनती मतदान कर्मियों की टीम को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने इसे संभव बनाया। हिमाचल प्रदेश की इस शानदार उपलब्धि के लिए 50,000 से अधिक कर्मियों को लगाया गया था।’’
हिमाचल प्रदेश ने 1951 में विधानसभा चुनावों के साथ अपनी चुनावी यात्रा शुरू की थी, जब 25.16 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था। बाद के चुनावों में मतदान प्रतिशत में लगातार वृद्धि देखी गई है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार शहरी और युवाओं की उदासीनता के मुद्दे को हल करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।
कुमार राज्य के मुख्य चलती औसत तुलना निर्वाचन अधिकारियों से कम मतदान प्रतिशत वाली सीटों और मतदान केंद्रों की पहचान करने का आग्रह कर रहे हैं जिससे मतदाताओं तक पहुंच बनाकर जागरूकता बढ़ायी चलती औसत तुलना जा सके।
निर्वाचन आयोग ने शहरी उदासीनता पर ध्यान केंद्रित करने और मतदान के महत्व को उजागर करने के लिए निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में मतदाता जागरूकता मंच स्थापित करने की वकालत की है।
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
आज दुनिया की आबादी हो जाएगी 8 अरब, जानें चीन से कब आगे निकल जाएगा भारत? सबसे अधिक आबादी वाला बन जाएगा देश
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि वैश्विक जनसंख्या 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन और 2100 में 10.4 बिलियन तक बढ़ सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या संभावना 2022 के अनुसार, 2023 में भारत चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। साथ ही, 15 नवंबर को दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। इस समय वैश्विक जनसंख्या 1950 के बाद से सबसे धीमी दर से बढ़ रही है, जो 2020 में 1 प्रतिशत कम हो गई थी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, विश्व की जनसंख्या 2030 में लगभग 8.5 अरब और 2050 में 9.7 अरब तक बढ़ सकती है। 2080 के दशक में जनसंख्या लगभग 10.4 अरब के शिखर पर पहुंचने और 2100 तक वहीं रहने का अनुमान है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "यह हमारे ग्रह की देखभाल करने की हमारी साझा जिम्मेदारी की याद दिलाता है और यह सोचने का क्षण है कि हम अभी भी एक-दूसरे के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से कहां चूकते हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक अनुमानित जनसंख्या वृद्धि का अधिकांश हिस्सा आठ देशों में होगा : कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और तंजानिया। आर्थिक और सामाजिक मामलों के संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव लियू जेनमिन ने कहा, "जनसंख्या वृद्धि और सतत विकास के बीच संबंध जटिल और बहुआयामी है।"
उन्होंने कहा, "तेजी से जनसंख्या वृद्धि गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण का मुकाबला करने और स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणालियों के कवरेज को और अधिक कठिन बना देती है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि जन्म के समय वैश्विक जीवन प्रत्याशा 2019 में 72.8 साल तक पहुंच गई, 1990 के बाद से लगभग 9 साल तक सुधार देखा चलती औसत तुलना गया। अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक वैश्विक जीवन प्रत्याशा 77.2 वर्ष होगी। हालांकि, 2021 में सबसे कम विकसित देश वैश्विक औसत से 7 साल पीछे रह गए।
इसके अलावा, विशेषज्ञों का दावा है कि आगे तापमान बढ़ने से कई देशों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए और अधिक कार्रवाई होगी।
पॉपुलेशनमैटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, "कई कारक जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं, और इसे संबोधित करने के लिए कई कार्यो की जरूरत होती है। हमारे ग्रह पर लोगों की संख्या उन कारकों में से एक है। प्रत्येक अतिरिक्त व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बढ़ाता है - गरीबों की तुलना में अमीर कहीं अधिक है और संख्या में वृद्धि करता है, अमीरों से कहीं ज्यादा गरीब जलवायु परिवर्तन के शिकार बनते हैं।"
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनद और बर्फ के आवरण घट रहे हैं, ताजे जल संसाधनों में कमी आ रही है। यह प्रवाल भित्तियों और अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों को समुद्र के अम्लीकरण में तेजी आने से जंतुओं के मरने का कारण बनता है।
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Carbon Emission: इन देशों की अगर बड़ी भागीदारी, तो ये दिखा भी रहे उतनी ही ज़िम्मेदारी
Carbon Emission: भारत समेत दुनिया के चारों बड़े उत्सर्जक ज़मीनी स्तर पर एमिशन्स को कम करने के लिए मज़बूती से प्रयासरत हैं।
Carbon Emission (फोटो: सोशल मीडिया )
Carbon Emission: इस बात में दो राय नहीं कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस एमिशन में वृद्धि हुई है, लेकिन पिछले दशक के औसत के मुक़ाबले यह बहुत कम मात्रा में हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का तो मानना है कि रिन्यूबल बिजली उत्पादन और इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से बढ़ते चलन ने एमिशन की इस वृद्धि के पैमाने को संभवत दो-तिहाई तक कम कर दिया है।
इतना ही नहीं, कई अन्य विश्लेषण बताते हैं कि:
• इस वर्ष की पहली छमाही में देखी गई बिजली की मांग में वृद्धि को अकेले रिन्यूबल एनेर्जी की मदद से पूरा कर लिया गया
• विंड टर्बाइन और सौर पैनल अब दुनिया की बिजली का 10% उत्पन्न करते हैं, और वर्तमान विकास दर से 2030 तक यह आंकड़ा 40% तक पहुँच जाएगा
• गाड़ियों के बाज़ार में इलेक्ट्रिक वाहन बड़ी पैठ बना रहे हैं। नई कारों की बिक्री में एलेक्ट्रिक वाहनों की 9% और बस और दोपहिया और तिपहिया वाहनों की बिक्री में एलेक्ट्रिक की लगभग आधी हिस्सेदारी है
• इलैक्ट्रिक चलती औसत तुलना मोबिलिटी में यह अप्रत्याशित तीव्र वृद्धि प्रति दिन दस लाख बैरल से अधिक तेल बचा रही है
• स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक निवेश में वृद्धि जारी है, और यह बिजली उत्पादन में लगभग सभी नए निवेश के लिए जिम्मेदार है।
इसी क्रम में, एक ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो भारत समेत दुनिया के चारों बड़े उत्सर्जक ज़मीनी स्तर पर एमिशन्स को कम करने के लिए मज़बूती से प्रयासरत हैं।
इस रिपोर्ट का शीर्षक है 'द बिग फोर: आर मेजर एमिटर्स डाउनप्लेईंग देयर क्लाइमेट एंड क्लीन एनेर्जी प्रोग्रेस'? (क्या प्रमुख उत्सर्जक अपनी जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा प्रगति को कम करके आंक रहे हैं?) और इसे तैयार किया है एनर्जी एंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट (ईसीआईयू) नाम की एक वैश्विक संस्था ने।
इस रिपोर्ट में प्रस्तुत साक्ष्यों से यह संभावना बनती है कि इन बड़े चार उत्सर्जकों में से कम से कम तीन - चीन, यूरोपीय संघ और भारत – न सिर्फ एक स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था की दिशा में तेजी से प्रगति देखेंगे, बल्कि वे अपने राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों के सापेक्ष एमिशन में तेज़ी से गिरावट को भी देखेंगे। और उनके द्वारा की गई प्रगति का निश्चित रूप से वैश्विक प्रभाव पड़ेगा जिसके चलते न सिर्फ ग्रीनहाउस गैस एमिशन कम होंगे बल्कि उनकी तेज प्रगति से अन्य सभी देशों के लिए क्लीन एनेर्जी की कीमतों में तेजी से गिरावट भी देखने को मिलेगी।
इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ईसीआईयू में इंटरनेशनल लीड, गैरेथ रेडमंड-किंग, ने कहा, "जिस गति से एनेर्जी ट्रांज़िशन तेजी से हो रहा है, विशेष रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था के इन पावरहाउजेज़ में, उससे यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कैसे सही नीति और बाजार के ढांचे उस गति से बदलाव ला रहे हैं जो कुछ साल पहले अकल्पनीय था। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और वैश्विक ऊर्जा संकट ने इस चलती औसत तुलना बदलाव को और तेज कर दिया है। फिलहाल जीवाश्म ईंधन के उपयोग में एक वृद्धि देखी जा सकती है मगर यह तय है कि ऐसा कुछ बस एक अल्पकालिक समाधान से अधिक कुछ नहीं हैं।"
एक नज़र इन तीन देशों की कार्यवाई पर
चीन: इस वर्ष 165 GW नवीकरणीय ऊर्जा स्थापित कर रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 25% अधिक है; 2022 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 6 मिलियन होने का अनुमान, जो कि 2021 का दोगुना होगा;
संयुक्त राज्य अमेरिका: सौर और पवन ऊर्जा की तैनाती में चीन के बाद दूसरे नंबर पर, पूर्वानुमान के अनुसार यहाँ 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 85% बिजली उत्पन्न हो सकती है; बिक्री के कुछ पूर्वानुमान बताते हैं कि यहाँ 2030 में खरीदी गई सभी नई कारों में से आधी इलेक्ट्रिक हो सकती हैं;
भारत: इस दशक में अक्षय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर, का तेजी से रोलआउट भारत के बिजली क्षेत्र को बदल कर रख देगा, यहाँ कोयला उत्पादन तेजी से लाभहीन होता जा रहा है; सभी रुझान बता रहे हैं भारत अपने 2070 के नेट ज़ीरो एमिशन लक्ष्य की ओर जाते हुए दिख रहा है।
ऊर्जा और चक्र अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने वाले शंघाई स्थित अनुसंधान टैंक, इकोसायकल के कार्यक्रम निदेशक यिक्सिउ वू ने इस पर कहा, "नवीकरणीय ऊर्जा के लिए चीन का समर्थन सुसंगत रहा है और जमीन पर विकसित स्थिति के लिए भी अत्यधिक अनुकूल है। आरई स्थापना उच्च स्तर पर चलती रहती है। चीन और सरकार बिजली बाजार में सुधार को गहरा करने और बिजली व्यवस्था को बदलने के लिए स्मार्ट ग्रिड बनाने के लिए नीतियां पेश कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों के समर्थन के साथ COP27 जलवायु शिखर सम्मेलन का एक प्रमुख फोकस, विश्लेषण इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि हर जगह स्वच्छ ट्रांज़िशन को तेज करने से महंगे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो जाती है। यह बदले में लागत कम करता है, वैश्विक वित्तीय प्रवाह को बदलता है, और खाद्य आपूर्ति को खतरे में डालने वाले जलवायु प्रभावों को कम करता है। यह सुझाव देता है कि सभी देशों के पास खुद को बिजली देने के लिए पर्याप्त नवीकरणीय क्षमता है, यह ऊर्जा सुरक्षा का एक सार्वभौमिक मार्ग है।
आज दुनिया की आबादी हो जाएगी 8 अरब, जानें चीन से कब आगे निकल जाएगा भारत? सबसे अधिक आबादी वाला बन जाएगा देश
संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि वैश्विक जनसंख्या 2030 में लगभग 8.5 बिलियन, 2050 में 9.7 बिलियन और 2100 में 10.4 बिलियन तक बढ़ सकती है।
संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या संभावना 2022 के अनुसार, 2023 में भारत चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। साथ ही, 15 नवंबर को दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। इस समय वैश्विक जनसंख्या 1950 के बाद से सबसे धीमी दर से बढ़ रही है, जो 2020 में 1 प्रतिशत कम हो गई थी।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, विश्व की जनसंख्या 2030 में लगभग 8.5 अरब और 2050 में 9.7 अरब तक बढ़ सकती है। 2080 के दशक में जनसंख्या लगभग 10.4 अरब के शिखर पर पहुंचने और 2100 तक वहीं रहने का अनुमान है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "यह हमारे ग्रह की देखभाल करने की हमारी साझा जिम्मेदारी की याद दिलाता है और यह सोचने का क्षण है कि हम अभी भी एक-दूसरे के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से कहां चूकते हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक अनुमानित जनसंख्या वृद्धि का अधिकांश हिस्सा आठ देशों में होगा : कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और तंजानिया। आर्थिक और सामाजिक मामलों के संयुक्त राष्ट्र के अवर महासचिव लियू जेनमिन ने कहा, "जनसंख्या वृद्धि और सतत विकास के बीच संबंध जटिल और बहुआयामी है।"
उन्होंने कहा, "तेजी से जनसंख्या वृद्धि गरीबी उन्मूलन, भूख और कुपोषण का मुकाबला करने और स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणालियों के कवरेज को और अधिक कठिन बना देती है।"
रिपोर्ट में कहा गया है कि जन्म के समय वैश्विक जीवन प्रत्याशा 2019 में 72.8 साल तक पहुंच गई, 1990 के बाद से लगभग 9 साल तक सुधार देखा गया। अनुमान लगाया गया चलती औसत तुलना है कि 2050 तक वैश्विक जीवन प्रत्याशा 77.2 वर्ष होगी। हालांकि, 2021 में सबसे कम विकसित देश वैश्विक औसत से 7 साल पीछे रह गए।
इसके अलावा, विशेषज्ञों का दावा है कि आगे तापमान बढ़ने से कई देशों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए और अधिक कार्रवाई होगी।
पॉपुलेशनमैटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, "कई कारक जलवायु परिवर्तन में योगदान करते हैं, और इसे संबोधित करने के लिए कई कार्यो की जरूरत होती चलती औसत तुलना है। हमारे ग्रह पर लोगों की संख्या उन कारकों में से एक है। प्रत्येक अतिरिक्त व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बढ़ाता है - गरीबों की तुलना में अमीर कहीं अधिक है और संख्या में वृद्धि करता है, अमीरों से कहीं ज्यादा गरीब जलवायु परिवर्तन के शिकार बनते हैं।"
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनद और बर्फ के आवरण घट रहे हैं, ताजे जल संसाधनों में कमी आ रही है। यह प्रवाल भित्तियों और अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों को समुद्र के अम्लीकरण में तेजी आने से जंतुओं के मरने का कारण बनता है।
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