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अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें

अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें

आर्थिक सुधार की हमसे जुड़ीं दस रोचक और जरूरी बातें

नई दिल्ली. 1991 से शुरू हुए आर्थिक सुधारों के 25 वर्ष इस साल पूरे हो रहे हैं। उदारीकरण के ठीक पहले देश की जीडीपी ग्रोथ 1% थी और मुश्किल से एक हफ्ते के निर्यात के बराबर ही विदेशी मुद्रा बची थी। इस माहौल और वैश्विक परिस्थितियों ने वर्ष 1991 में देश में उदारीकरण का रास्ता साफ किया।

इसके 25 वर्ष बाद अब इस वर्ष उदारीकरण नए दौर में प्रवेश करेगा। सोमवार को पेश हाेने वाले बजट में उदारीकरण के लिए महत्वपूर्ण जीएसटी, विनिवेश, रिटेल एफडीआई, लेबर रिफॉर्म्स सेक्टर के लिए वित्त मंत्री क्या घोषणा करेंगे इस पर निगाहें रहेंगी।


वो जो हिट थे अब कहीं नहीं उस दौर के मशहूर ब्रांड प्रीमियर पद्मिनी (कार), गोल्ड स्पॉट (कोल्ड ड्रिंक), बिग फन (च्युइंगम) और राजदूत (बाइक) बंद ही हो गए। साथ ही तार और टाइप राइटर्स भी समय के साथ बंद हो गए।

वर्ष 1991 से लेकर अब तक के 25 वर्षों में टेलीकॉम, आईटी, ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल, बैंकिंग-इंश्योरेंस जैसे सेक्टर में तेजी से बदलाव आया है। 25 वर्ष में औसत जीडीपी की गति उससे पहले के 25 वर्ष की तुलना में दोगुनी रही है। इस दौरान हमारी सरकार ठीक से कार्य नहीं कर पाई है। पब्लिक हेल्थ, पब्लिक एज्युकेशन, हाउसिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर (हाई-वे को छोड़कर) की गति मंद रही है। इसलिए लोगों के बीच आर्थिक दूरी बढ़ गई है। आने वाले वर्षों में शिक्षा, फूड प्रोसेसिंग, रिटेल, एयरलाइंस, रेलवे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, डिफेंस और लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री में तेजी रहेगी।


राजीव कुमार, सेंटर फार पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फैलो रणनीतिक विनिवेश की ओर जाना चाहिए : 25 वर्ष के सफर के बाद भी अभी भी उदारीकरण के लिए आम सहमति नहीं बन पाई है। राजनीतकि असहमति के कारण नीतिगत निर्णय नहीं हो पा रहे हैं। भविष्य में चार बातें महत्वपूर्ण रहेंगी। टैक्नॉलाजी में क्या नया होता है, विश्व की अर्थव्यवस्था कैसी रहती है, भारत की अर्थव्यवस्था, आंतरिक स्थिति कैसी रहती है और राजनीतिक दलों का रवैया कैसा रहता है। सरकार को रणनीतिक बिक्री की ओर जाना चाहिए और धीरे-धीरे विनिवेश के जरिए अपनी हिस्सेदारी घटाना चाहिए। जिस तेजी से आर्थिक सुधार हुए हैं उसकी तुलना में गर्वनेंस का ढांचा और कार्य प्रणाली नहीं बदली है। जबकि नया ढांचा बनना चाहिए। - यशवंत सिन्हा, पूर्व वित्त मंत्री


विभिन्न क्षेत्रों के लिए रेग्युलेटर बनाए सरकार : 25 वर्ष के असर को अगर हम मोटे तौर पर देखें तो जीडीपी ग्रोथ, प्रति व्यक्ति आय और उपभोक्ताओं के पास विभिन्न वस्तुओं को चुनने के विकल्प बढ़े हैं। पिछले कुछ वर्षों से सुधार बहुत धीमा हुआ है। शिक्षा, कृषि क्षेत्रों में अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। भविष्य में रेलवे, रक्षा, बैंक-वित्तीय सेवा क्षेत्र बेहतर कर सकती हैं। हालांकि उपभोक्ता इस पूरी प्रक्रिया में विजेता रहेगा। सरकार की भूमिका भी बदल जाती है। सरकार नियम बनाए जिसका फायदा लोग उठाए। साथ ही बाजार में कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बनी रहे यह भी सुनिश्चित करे। विभिन्न क्षेत्रों में रेग्युलेटर बनाना चाहिए। - डीके जोशी, मुख्य अर्थशास्त्री क्रिसिल

चीन का आर्थिक उदय: कभी भारत से भी पीछे रहने वाला चीन कैसे बना आर्थिक महाशक्ति

China

चीन का नाम सुनते ही विश्व की एक बड़ी महाशक्ति का ध्यान आता है जिसने अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दिया। आज चीन (China) विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जिस विकास दर से वह आगे बढ़ रहा है ऐसा लग रहा है कि वह जल्द ही विश्व का सबसे ताकतवर देश बन जाएगा। एक समय में चीन (China) और भारत विकास दर के मापकों पर एक समान ही थे, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि चीन ने एक लंबी छ्लांग लगाई और आज अमेरिका को चुनौती दे रहा है।

यह बात द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की है। युद्ध समाप्त हो चुका था और अमेरिका निष्पक्ष रूप से विश्व का नेतृत्व करना चाहता था लेकिन साम्यवादी सोवियत संघ से बराबर की चुनौती मिल रही थी। चीन (China) में भी क्रांति अपने ज़ोरों पर थी। वहां भी दो गुटों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष जारी था। विश्वयुद्ध युद्ध की समाप्ति पश्चात् यह समस्या उत्पन्न हुई कि नानकिंग सरकार के अधिकृत प्रदेशों अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें पर चुंगकिंग की कुओमितांग सरकार का आधिपत्य हो जिसके मुखिया च्यांग काई शेक थे या येनान प्रांत की साम्यवादी सरकार जिसके मुखिया अध्यक्ष माओत्से तुंग थे। दोनों ही नानकिंग पर नियंत्रण के लिए आगे बढ़े। अतः चीन में पुनः गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई, लेकिन सफलता साम्यवादी सरकार को मिली और माओत्से तुंग की अध्यक्षता में सरकार बन गयी। च्यांग काई शेक की कुओमितांग सरकार फारमोसा द्वीप (ताइवान) में सिमट कर रह गई। अमेरिका ने चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता न देकर फारमोसा स्थित राष्ट्रवादी सरकार अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें को चीन की सरकार के रूप में मान्यता दी और अपना संबंध बनाए रखा।

चीन (China) में साम्यवाद की यह शुरुआत थी। साम्यवादियों ने अपनी तय आर्थिक-सामाजिक नीतियों को लागू किया। इस उद्देश्य के लिए चीन की प्रशासन ने सोवियत आर्थिक मॉडल को अपनाया, जो आधुनिक क्षेत्र में राज्य के स्वामित्व, कृषि में बड़ी सामूहिक इकाइयों और केंद्रीकृत आर्थिक नियोजन पर आधारित था। आर्थिक विकास के लिए सोवियत मॉडल प्रथम पंचवर्षीय योजना 1953-57 लागू किया गया। बता दें कि सोवियत अर्थव्यवस्था में, मुख्य उद्देश्य उच्च आर्थिक विकास दर हासिल करना था। 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद पहले दो दशकों में जीडीपी उत्पादन और प्रति व्यक्ति आय में भारी वृद्धि हुई। 1953-1978 के बीच 6% की वार्षिक औसत विकास दर रहा लेकिन चीन को लगा कि यह काफी नहीं है। और दिसंबर 1978 में कम्युनिस्ट पार्टी की 11 वीं केंद्रीय समिति के तीसरे सत्र में चीन ने अपने अस्थिर आर्थिक स्थिति से अधिक स्थिर सुधारों पर कम किया। इस आर्थिक क्रांति को लाने का श्रेय डांग श्याओपिंग को दिया जाता है उन्होंने वर्ष 1978 में जिस आर्थिक क्रांति की शुरुआत की थी। इन्हीं सुधारों की शुरुआत होने से चीन भविष्य में विकास दर में वृद्धि के लिए आधार तैयार किया। डांग श्याओपिंग ने जब आर्थिक सुधारों को 1978 में शुरू किया था तो चीन का दुनिया की अर्थव्यवस्था में हिस्सा महज 1.8 फ़ीसदी था। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए पहले इस बात को तय किया कि कहां विदेशी निवेश लगाना है और कहां नहीं। क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए विदेशी पूंजी को चीन में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी।

यह तय करते ही चीन में विश्व के अन्य देशों के निवेश के लिए द्वार खुल गया और फिर एक के बाद एक लगातार निवेश हुए। इसके लिए उसने विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण किया और विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए चीन ने दक्षिणी तटीय प्रांतों को चुना। इस बदलाव से कम्युनिस्ट समाजवादी राजनीतिक माहौल ही बदल गया क्योंकि यह माओ के साम्यवाद से ठीक उल्टा था। इस बदलाव से चीन ने अपने ऊपर से सोवियत आर्थिक मॉडल को ही उतार फेंका और फिर अपनी अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अपनी ज़रूरतों के अनुसार शुरू किया। अगर आंकड़ों की बात करें तो चीन की जीडीपी में वर्ष 1978 से 2016 के बीच 3,230 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसी दौरान 70 करोड़ लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर लाया गया और 38.5 करोड़ लोग मध्य वर्ग में शामिल हुए। चीन का विदेशी व्यापार 17,500 फ़ीसदी बढ़ा और 2015 तक चीन विदेशी व्यापार में दुनिया की अगुवा बनकर सामने आया। डांग श्याओपिंग अक्सर टू-कैट थिअरी का उल्लेख अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें किया करते थे कि जब तक बिल्ली चूहे को पकड़ती है तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वो सफ़ेद है या काली। इसी का परिणाम था कि 1979 से 2010 तक, चीन (China) की औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर 9.91% थी, जो 1984 में 15.2% के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। इन सुधारों के बाद चीन एक ऐसा देश बन गया, जहां एक कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था के माध्यम से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का सफल संचालन हो रहा है।

इन सुधारों का लक्ष्य निर्यात का तेजी से विस्तार करने के साथ-साथ परिवहन, संचार, कोयला, लोहा, इस्पात, भवन निर्माण सामग्री और विद्युत शक्ति में होने वाली कमियों को दूर करना था। इन सुधारों में सबसे सफल सुधार नीति कृषि में थी। सरकार द्वारा 1979 में पहाड़ी या शुष्क क्षेत्रों में गरीब ग्रामीण इकाइयों के लिए उत्पादन की अनुबंध जिम्मेदारी प्रणाली शुरू की गयी थी ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके। इस व्यवस्था ने किसानों को उत्पादन लागत कम करने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन किया। इसकी शुरूआत के तुरंत बाद ही कई कृषि इकाइयों ने अपनाया था। शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी मुक्त बाजार स्थापित करने के लिए आधिकारिक प्रोत्साहन दिया गया। इन सुधारों से किसानों को स्थानीय बाजारों में अपनी उपज बेचने की अनुमति मिली और सामूहिक खेती से ऊपर उठकर पारिवारिक खेती शुरू हुई।

एक साम्यवादी देश से इस तरह का आर्थिक सुधार अकल्पनीय था। अगर हम सन 1960 की बात बात करे, तो चीन का आर्थिक हालात, भारत से भी खराब था।

साठ दशक में चीन (China) की आर्थिक स्थिति भारत से नीचे थी और फिर इन सुधारों के कारण धीरे धीरे ऊपर उठते हुए वर्ष 1985 तक ये भारत के बराबर आ चुका था। यानि वर्ष 1985 तक भी भारत और चीन की आर्थिक स्थिति एक जैसे ही थे।

पर उसके बाद चीन ने कुछ और सुधार करते हुए उन क्षेत्रों पर निवेश किया जहां उस समय की मांग रही। साथ ही साथ उसने अपने शिल्पायन और कृषि दोनों को बढ़ावा देना प्रारम्भ किया।

1980 के बाद चीन(China) अपने देश में बढ़ती हुई जनसंख्या का भरपूर उपयोग किया और श्रम के सस्ता रहने से विदेशी कंपनियां भी निवेश करने को दौड़ पड़ी।

आज चीनी अर्थव्यवस्था विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है। शंघाई की चमक विश्व के सबसे विकसित देशों के शहरों को टक्कर देती है, सुधारवादी नीतियों के लागू होने के बाद असमानता बढ़ी है लेकिन इस दौरान बड़ी संख्या में लोग गरीबी से बाहर भी निकले हैं, सैन्य क्षमता और वैश्विक स्तर उनकी धमक बढ़ी है। चीन की अर्थव्यवस्था इस समय नॉमिनल जीडीपी के अनुसार अमेरिका के बाद दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसका नॉमिनल जीडीपी 10 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक है जोकि विश्व की तीसरी व चौथी अर्थव्यवस्थाओं जापान व जर्मनी के जीडीपी के कुल जीडीपी से भी अधिक है।

1990 में विश्व अर्थव्यवस्था में चीन की अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से भी कम थी जोकि 2018 में बढ़कर 18.69 प्रतिशत हो गयी। इस समय दुनिया के 80 प्रतिशत एयरकंडीशनर, 70 प्रतिशत मोबाइल फ़ोन और 60 प्रतिशत जूते चीन में बनते हैं। विश्व बैंक के डेटा के अनुसार वैश्विक कपड़ा निर्यात में चीन की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से भी ऊपर है। मैन्युफै़क्चरिंग सेक्टर, जिसे पूंजीवादी मूल्य उत्पादन का सबसे प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में चीन दुनिया का अग्रणी देश बन चुका है। इस प्रकार चीन ने मैन्युफै़क्चरिंग में 110 वर्षों से चले आ रहे अमेरिका के नेतृत्व को पछाड़ दिया है। दुनिया के कुल कच्चे स्टील के उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा चीन का है। मार्क्सवादी भूगोलशास्त्री डेविड हार्वी ने यह दिखाया है कि वर्ष 2011 और 2013 के बीच चीन में सीमेंट की जितनी खपत हुई वह अमेरिका द्वारा बीसवीं सदी में सीमेंट की कुल खपत का डेढ़ गुना है। इसके अतिरिक्त खदान व सेवा क्षेत्रों में भी चीन ने हाल के दशकों में तेज़ी से विकास किया है। आज दुनिया की कुल आर्थिक वृद्धि का 28.1 प्रतिशत चीन की बदौलत है। 1952 में, चीन की जीडीपी 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जबकि 2018 में, इसकी जीडीपी 13.61 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई, 452.6 गुना की वृद्धि हुई। 1978 में, चीन की जीडीपी दुनिया में 11 वें स्थान पर थी, जबकि 2010 में, यह जापान को पछाड़कर दुनिया की दूसरी अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई और तब से यह दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है। अपनी आर्थिक शक्तिमत्ता के विस्तार के अनुरूप चीन अपनी सैन्य शक्ति का ज़बरदस्त विकास कर रहा है। सैन्य सम्बन्धी ख़र्च की दृष्टि से चीन दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर आता है। पिछले दशक के दौरान चीन ने अपनी सैन्य शक्ति का आधुनिकीकरण करने पर विशेष ज़ोर दिया है। अब शी चिनफिंग चीनी राष्ट्र के पुनरुत्थान का सपना सामने रख रहे हैं जिसमें चीन के आर्थिक मजबूती के साथ दुनिया के मंच पर उसे एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की बात भी शामिल है।

देश में बढ़ती आर्थिक विषमता से खत्म होता आजादी का मकसद

विख्यात आर्थिक पत्रिका फोर्ब्स अरसे से दुनिया भर के अरब-खरबपतियों की सूची छापती है। 1990 तक इसमें एक भी भारतीय नहीं दिखता था। आज इस लिस्ट में 100 से अधिक भारतीय हैं। पर यह कोई गुमान की बात नहीं, बल्कि बढ़ते सामाजिक तनाव और हिंसक अपराधों की घंटी है।

फोटोः सोशल मीडिया

राजेश रपरिया

आज देश में आय की विषमता चरम पर है, जिसके कुप्रभाव देश की तरक्की और समाज पर दिखाई देने लगे हैं। इससे संविधान की मूल प्रस्तावना के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय का संकल्प बेमतलब हो गया है। आज देश की कुल आय के 51 फीसदी हिस्से पर महज 1 फीसदी लोगों का कब्जा है। पिछले तीन दशकों में तेजी से बढ़ी आर्थिक असमानता ने आजादी के मंसूबों पर पानी फेर दिया है और अधिसंख्य आबादी शोषण और अभावों के बीच जीने के लिए अभिशप्त है।

दुख की बात है कि बढ़ती आर्थिक विषमता पर सरकारी दस्तावेज मौन हैं। दो फ्रेंच अर्थशास्त्रियों लुकास चांसल और थॉमस पिकेटी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने देश में उपलब्ध आयकर के आंकड़ों पर गहन शोध कर विस्तार से बताया कि भारत में आय-असमानता ब्रिटिश गुलामी से भी ज्यादा हो गई है।

इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने अपने शोध पत्र में बताया है कि 1930 के दशक के अंत में भारत की 21 फीसदी आय पर 1 फीसदी धनाढ़्यों का कब्जा था। 80 के दशक की शुरुआत में यह हिस्सा घटकर 6 फीसदी रह गया यानि 1 फीसदी धनाढ़्यों का देश की कुल आय के 6 फीसदी हिस्से पर आधिपत्य रह गया। पर अब धनाढ़्यों की कुल राष्ट्रीय आय में हिस्सेदारी बढ़कर 22 फीसदी हो गई है। इतनी आर्थिक विषमता अमेरिका, ब्रिटेन, चीन या अन्य यूरोपीय देशों में नहीं है।

आजादी के वक्त देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस आय विषमता के सामाजिक और अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें आर्थिक कुप्रभावों को लेकर काफी सतर्क थे। इसलिए उन्होंने विकास का ऐसा मॉडल चुना कि देश का उत्पादन बढ़े, आय बढ़े और संपदा निर्माण हो, लेकिन वह चुनिंदा हाथों में सिमट कर नहीं रह जाए। 18 जनवरी 1948 को ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें भाषण में उन्होंने कहा था कि एक भूखे इंसान के लिए या एक बहुत गरीब मुल्क के लिए आजादी का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इसलिए हमें उत्पादन बढ़ाना चाहिए जिससे हमारे पास काफी दौलत हो जाए और मुनासिब आर्थिक योजना से हम उसका ऐसा वितरण करें कि वह करोड़ों लोगों, खासकर आम लोगों तक पहुंच सके।

अन्य तमाम अध्ययन हैं जिनसे देश में आय और संपदा वितरण में गहरी खाई का पता चलता है। नेशनल सैंपल सर्वे कार्यालय के संग्रहित आंकड़ों का अध्ययन कर एक रिपोर्ट आई है। इसके अनुसार देश की कुल संपदा के 28 फीसदी हिस्से पर 1 फीसदी लोगों का कब्जा है, जो 1991 में 11 फीसदी था। एक और मानक है जिनी को इफिशंट। 1990 में यह कोइफिशंट (गुणांक) 45 था जो 2016 में बढ़कर 51.4 हो गया है। इसका मतलब है कि देश में आय विषमता तेजी से बढ़ी है। बढ़ती आय असमानता से संपदा वितरण पर प्रभाव पड़ता है।

निवेश बैंकिंग की ख्यात बैंक क्रेडिट सूइस की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश के एक फीसदी लोगों के पास कुल राष्ट्रीय दौलत का 51.5 फीसदी हिस्सा है और देश में 10 फीसदी लोगों के पास 77.4 फीसदी दौलत है। नीचे के 60 फीसदी लोगों की कुल राष्ट्रीय दौलत में हिस्सेदारी महज 4.7 फीसदी है। इनमें सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों के पास कोई संपदा नहीं है, बल्कि उन पर 34 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है।

नाकामियों को छिपाने के लिए विकास दर को अधिक दिखाने की परंपरा 5-6 साल में ही शुरू हुई है। लेकिन मूल सवाल यह है कि विकास देश के एक या 10 फीसदी लोगों के लिए है या बाकी आबादी के लिए भी, जिनमें मध्यम वर्ग भी शामिल है। बार-बार बताया जाता है कि कितने करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। सच यह है कि इनका दोबारा गरीबी रेखा के नीचे जाने का खतरा बना रहता है, क्योंकि आय विषमता के कारण इनकी आय नहीं बढ़ पाती। इलाज के खर्चों के कारण ही तकरीबन 5 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं।

आर्थिक सुधार मुख्य रूप से राष्ट्रीयकरण को खत्म करने पर ही केंद्रित होकर रह गए और निजीकरण का मतलब हो गया सरकारी कंपनियां भी निजी क्षेत्र को सौंप देना। आर्थिक सुधारों से विकास दर तो तेज हुई, लेकिन जिस लाभ का दावा किया गया था, वह मिथ्या साबित हुआ। नतीजतन, देश के कुछ हाथों में ही आय और पूंजी का बड़ा हिस्सा सिमटकर रह गया। आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के बाद वही हुआ जिसका डर पंडित नेहरू अनेक भाषणों में जता चुके थे। नए आर्थिक दौर के 30 सालों में ही देश की आय और संपदा पर चंद लोगों का शिकंजा कस गया। विख्यात आर्थिक पत्रिका फोर्ब्स अरसे से दुनिया भर के अरब-खरबपतियों की सूची छापती है। 1990 तक इसमें एक भी भारतीय नहीं था। आज इसमें 100 से अधिक भारतीय हैं। पर यह गुमान की बात नहीं, बल्कि बढ़ते सामाजिक तनाव और हिंसक अपराधों की घंटी है।

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की बढ़ती घुसपैठ से 60 फीसदी आबादी बेहतर शिक्षाऔर इलाज से दूर होती जा रही है। आय की बढ़ती विषमता का अंतर कितना दर्दनाक होता है, यह नवजात और शिशु मृत्यु दर से समझा जा सकता है। मसलन सबसे कम आय वर्ग में नवजात मृत्यु दर 40.7 फीसदी है। जबकि शीर्ष धनाढ़्य वर्ग में 14.6 फीसदी है। पांच साल के आयु वर्ग में शिशु मृत्यु दर शीर्ष धनाढ़्य वर्ग में 19.8 फीसदी, जबकि सबसे कम आय वर्ग में 56.3 फीसदी है। ऐसा अंतर इन वर्गों में बच्चों के कुपोषण और महिलाओं की शिक्षा को लेकर भी है।

अत्यधिक विषमता विकास दर को भी लील लेती है। आर्थिक विकास दर तभी एक दिशा में रह सकती है, जब निर्धन की आय में सुधार हो, उसकी क्रय शक्ति बढ़े। यदि निर्धन और वंचित तबके की आय नहीं बढ़ती है तो मांग का चक्र बाधित होता है। आज चारों ओर से मंदी की खबरें आ रही हैं। पिछले तीन सालों में देश की एक बड़ी आबादी का ज्यादा खर्च आवश्यक वस्तुओं की खरीद पर हो रहा है। उपभोक्ता सामग्री की खरीद से इस वर्ग ने मुंह फेर लिया है, जो मंदी में और विकास दर में लगातार घट-बढ़ का कारण है। यह विकास दर पर बढ़ती आय विषमता का नतीजा है।

मुश्किल यह है कि सरकार इस समस्या से जानबूझ कर अंजान बनी हुई है। असल में अकूत दौलत जमा हो जाने के कारण यह छोटा-सा वर्ग सरकारी नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करने में समर्थ हो जाता है। यह वर्ग चुनावों में मतदान को प्रभावित करने की स्थिति में आ जाता है। यही दुनिया भर की हकीकत है। जो दल उनके हक में नीतियां बनाता है, उसके लिए यह चुनावों में पानी की तरह पैसा बहा देता है। तमाम विधायक-सांसद इनकी जेब में होते हैं। थिंक टैंकों का वित्त पोषण करते हैं जो उनके पक्ष में जनहित की सब्सिडी खत्म करने का प्रपंच रचते हैं और चाय पर चर्चा चलाते हैं।

संवैधानिक संस्थाओं में अपने प्रभाव के कारण कर-चोरी के अनूठे रास्ते ढूंढ़ने में यह वर्ग माहिर है ।इससे सरकार का कर संग्रह कम हो जाता है और सामाजिक व्यय कम करने या यथास्थिर रखने का सरकार को बहाना मिल जाता है। पर धनाढ़्यों को राहत देने या आर्थिक सहायता देने के लिए सरकार को कभी तंगी महसूस नहीं होती है। मीडिया भी इस वर्ग के इशारे पर नाचता है। देश में यह सब विसंगतियां बखूबी देखी जा सकती हैं। आर्थिक विषमता का दूसरा पहलू यह भी है कि इससे समाज में आपसी वैर बढ़ता है और हिंसक अपराधों में बेहिसाब तेजी आती है, जिनकी खबरों से आजकल अखबार-टीवी अटे रहते हैं।

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कैसे खुद को सुधारें? अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए 7 आसान आदतें

दोस्तों, हम सब अपनी किसी न किसी बुरी आदत के कारण परेशान रहते हैं। एक बार बुरी लत लग गयी, तो हम चाह कर भी उससे छुटकारा नहीं पा पाते हैं। इसीलिए अच्छी आदतें डालना जितना आवश्यक है, बुरी आदतें छोड़ कर खुद को सुधारना भी उतना ही आवश्यक है।

यदि आप भी इस सवाल का जवाब ढूँढ रहे हैं, तो इन 7 आसान आदातों को अपना कर अपना जीवन पहले से बेहतर बनाएं :

1. कभी समय नष्ट न करें !

दोस्तों समय की कीमत तब पता चलती है, जब वो हमारे हाथों से निकल जाता है। समय बर्बाद करने की आदत आपकी सफलता में बहुत बड़ा रोड़ा है।

2. हर हाल में सच बोलने की आदत लगाएं, झूठ का साथ कभी न दें !

एक झूठ को छुपाने के लिए 100 झूठ बोलने पड़ते हैं। ऐसा न करने से हम खुद को, और दूसरों को भी तकलीफ से बचा सकते हैं।

3. हर दिन कुछ न कुछ पढ़ें !

पढ़ने से हमारा निरंतर मानसिक विकास होता है। इसीलिए किताबों को अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाएं।

4. बुरी संगति को कहें "अलविदा " !

आज हीं ऐसे लोगों से दूरी बनाइये जिनकी आदतें आपके जीवन पर बुरा प्रभाव डालती हैं। अच्छे लोगों के बीच रहें, ताकि आप अच्छी चीज़ें सीख सकें।

5. मोबाइल और कंप्यूटर जैसे उपकरणों से लीजिये एक छोटा सा "ब्रेक" !

आजकल हम मोबाइल और कंप्यूटर के गुलाम बन गए हैं । इन उपकरणों से दूरी बनाइये और असली दुनिया में ज्यादा समय बिताइये।

फ्री सिलाई मशीन योजना 2022 Free Silai Machine Yojana Online Apply, State wise

Free Silai Machine Yojana Online Registration 2022 | फ्री सिलाई मशीन योजना के अंतर्गत ऑनलाइन आवेदन करने की प्रक्रिया व Free Silai Machine Yojana एप्लीकेशन फॉर्म पीडीऑफ डाउनलोड करे तथा सिलाई मशीन योजना लिस्ट देखे | फ्री सिलाई मशीन योजना की शुरुआत हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी इस योजना के अंतर्गत देश की तमाम महिलाओं को फ्री सिलाई मशीन प्रदान की जाएगी जिसके जरिए वह आसानी से घर बैठे रोजगार प्राप्त कर सकते हैं एवं अपनी जिंदगी गुस्सा बसर कर सकती हैं देश की तमाम गरीबों श्रमिक महिलाएं Free Silai Machine Yojana का लाभ उठा सकते हैं योजना से संबंधित अधिक जानकारी जैसे आवेदन प्रक्रिया, पात्रता, जरूरी दस्तावेज आदि, प्राप्त करने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें

Free Silai Machine Yojana

PM Free Silai Machine Yojana

इस योजना का लाभ देश के शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रो की आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओ और श्रमिक महिलाओ को दिया जायेगा | Free Silai Machine 2022 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा हर राज्य में 50000 के अधिक महिलाओ (More than 50000 women ) को निशुल्क सिलाई मशीन प्रदान की जाएगी | इस योजना के ज़रिये श्रमिक महिलाये Free Silai Machine प्राप्त करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण अच्छे से कर सकेंगी | इस योजना के अंतर्गत देश की जो इच्छुक महिलाये फ्री सिलाई मशीन लेना चाहती है उन्हें इस योजना के तहत आवेदन करना होगा | इस योजना के अंतर्गत केवल 20 से 40 वर्ष की आयु की (20 to 40 year old women can apply ) ही महिलाये आवेदन कर सकती है | E Shram Card Download करने के लिए क्लिक करें

फ्री सिलाई मशीन योजना 2022 का उद्देश्य

निशुल्क सिलाई मशीन योजना 2022 का मुख्य उद्देश्य देश की आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओ को केंद्र सरकार द्वारा मुफ्त में सिलाई मशीन प्रदान करना | Free Silai Machine Yojana के ज़रिये श्रमिक महिलाओ को रोजगार के अवसर प्रदान करना जिससे वह घर बैठे सिलाई करके अच्छी आमदनी इकठ्ठा कर सकेंगी | इस के ज़रिये श्रमिक महिलाओ को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना और इस योजना से ग्रामीण महिलाओ की स्थिति में भी सुधार आएगा |

हरियाणा फ्री सिलाई मशीन योजना

हरियाणा के श्रम विभाग द्वारा Haryana Free Silai Machine Yojana का शुभारंभ किया गया है। इस योजना के माध्यम से श्रम विभाग में पंजीकृत महिलाओं को सिलाई मशीन खरीदने के लिए 3500 रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए महिला लाभार्थी को श्रम विभाग हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर आवेदन करना होगा। केवल BOCW पंजीकृत महिला जिनके पास न्यूनतम 1 वर्ष की सदस्यता है उनको ही इस योजना का लाभ प्रदान किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत लाभ की राशि महिला को केवल एक बार ही प्रदान की जाएगी। इस योजना के माध्यम से हरियाणा की महिलाए सशक्त तथा आत्मनिर्भर बनेंगी। इसके अलावा उनको अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध होगा जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार आएगा।

फ्री सिलाई मशीन योजना से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण निर्देश

  • लाभार्थियों को सिलाई मशीन की राशि, ट्रेडमार्क, सोर्स तथा खरीद की तिथि से संबंधित जानकारी प्रदान करनी होगी।
  • इस योजना का लाभ केवल एक बार ही प्राप्त किया जा सकता अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें है।
  • हरियाणा फ्री सिलाई मशीन योजना का लाभ केवल उन महिलाओं को प्रदान किया जाएगा जो BOCW बोर्ड में पंजीकृत है।
  • इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए महिला नियुन्तम एक वर्ष से पंजीकृत होनी चाहिए।

Free Silai Machine Yojana के लाभ

  • इस योजना का लाभ देश की श्रमिक महिलाओ को प्रदान किया जायेगा ।
  • इस योजना के अंतर्गत देश की सभी श्रमिक महिलाओ को सरकार द्वारा निशुल्क सिलाई मशीन प्रदान की जाएगी ।
  • फ्री सिलाई मशीन प्राप्त करके देश की महिलाये घर बैठे लोगो के कपडे सी कर अच्छी आमदनी अर्जित कर सकती है ।
  • देश की ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रो की आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की महिलाओ को इस योजना के अंतर्गत शामिल किया जायेगा ।
  • देश की गरीब महिलाओ को इस योजना के ज़रिये रोजगार के अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें अवसर प्रदान किये जायेगे ।
  • Pradhanmantri Free Silai Machine 2022 के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा हर राज्य में 50000 के अधिक महिलाओ को निशुल्क सिलाई मशीन प्रदान की जाएगी |
  • इस योजना के ज़रिये देश की महिलाओ को रोजगार के लिए प्रेरित करना और महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाना और सशक्त बनाना

Free Silai Machine Yojana की पात्रता

  • इस योजना के तहत आवेदन करने वाली महिलाओ की आयु 20 से 40 वर्ष होनी चाहिए |
  • इस Free Silai Machine 2022 के अंतर्गत श्रमिक महिलाओ के पति की वार्षिक आय 12000 रूपये से अधिक नहीं होनी चाहिए |
  • देश की आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाये ही Free Silai Machine 2022 के तहत पात्र होंगी |
  • देश की विधवा और विकलांग महिलाये भी इस योजना का लाभ उठा सकती है |

पीएम सिलाई मशीन स्कीम के दस्तावेज़

  • आवेदिका का आधार कार्ड
  • आयु प्रमाण पत्र
  • आय प्रमाण पत्र
  • पहचान पत्र
  • यदि विकलांग है तो विकलांग चिकित्सा प्रमाण पत्र
  • यदि कोई महिला विधवा है तो उसका निराश्रित विधवा प्रमाण पत्र
  • सामुदायिक प्रमाण पत्र
  • मोबाइल नंबर
  • पासपोर्ट साइज फोटो

Free Silai Machine Yojana के तहत लागू राज्यों के नाम

इस योजना को इस समय केवल कुछ ही राज्यों में लागू किया गया है जैसे हरियाणा ,गुजरात ,महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश ,कर्नाटक, राजस्थान , मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,बिहार आदि और और समय बाद इस योजना को पुरे देश में लागू कर दिया जायेगा |

रेटिंग: 4.48
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 638
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